माँ....
"तुम्हारे कोमल हाथों के स्पर्श से जुड़ी है मेरे जीवन की न जाने कितनी ही सुंदर यादें ,
बचपन के वो सुनहरे पल...जब
तुमने मेरे नन्हे हाथों को सहारा देकर चलना सिखाया .....
वो उलझन भरे पल जब तुम्हारे हाथों ने मेरी भीगी हुई पलकों से आंसू पोछकर
मुझे हसना सिखाया ....
और याद है मुझे वो प्रोत्साहन भरे पल जब
तुमने गालों को प्यार से थपथपा कर मुझे अपने सीने से लगाया....
माँ ....
जिसके आँचल में छुपा है इस धरती का स्वर्ग.......आज से कुछ लिखना शुरू किया तो सोचा की हर काम की शुरुआत भगवान् के नाम से हो...नाम भी ले लिया .....फिर सोचा कहाँ से शुरू करू....फिर मुझे मेरी माँ का ख्याल आया....क्यों न यही से शुरू करू....माँ का दर्जा भगवान् से ज्यादा नहीं तो उससे कुछ कम भी नहीं है....ऐसा मुझे लगता है....
तू कितनी अच्छी है...तू कितनी भोली है...प्यारी प्यारी है....
ये जो दुनिया है ये वन है काँटों का...तू फुलवारी है....
ओः माँ.....
जब माँ क पास होती थी तब उनका पेट पकड़कर सोया करती थी...बहुत मजा आता था....नए नए पकवान बनाती थी...बस इक बार कहने की देरी होती थी सामने पकवान तैयार....क्यूँ होती है माँ ऐसी....हर वक़्त अपने परिवार क बारे में सोचना....अपने से ज्यादा बच्चो का ख्याल रखना...हर मुसीबत क लिए तैयार होना....कैसे सब कर लेती है माँ...
अपना नहीं तुझे दुःख सुख कोई...
मै मुस्काया तू मुस्काई ...मै रोया तू रोई...
मेरे हसने पे मेरे रोने पे तू बलिहारी है.....
ओः माँ....
आज मेरे एक अजीज दोस्त की माँ बीमार है....पता नहीं कहाँ से दिल में इतना दर्द उमड़ आया .....इतनी शक्ति कहाँ से देता है भगवन उनको अपनी बीमारी से लड़ने की....अपना सारा गम क्यों अपने आँचल में छुपाये रहती है वो.... बचपन में अपनी माँ को जब भी उदास या रोते हुए देखती....पूछती थी क्या हुआ माँ...वो कभी भी नहीं बताती थी अपने दुःख की वजह....कुछ भी उल्टा पुल्टा बोलकर त्ताल जाती थी॥बहुत से सवाल पूछे मैंने लेकिन माँ ने कभी ठीक से नहीं बताया....यही बोला जब तुम बड़े हो जाओगे सब समझ आ जायेगा....शायद उसकी उलझन ये कहती थी....
पड़ लिख के बड़ा होकर तू एक किताब लिखना ....
अपने सवालों का तू खुद ही जवाब लिखना
वो सही कहती थी ...बहुत से ऐसे सवाल है जिनका जवाब हमे खुद ही ढूँढना होता है...मेरे लिए ये भगवान् का बनाया वो अटूट रिश्ता है जिसे कोई ताकत अलग नहीं कर सकती... तेरे आँचल की छाँव में.....कुछ पंक्तियाँ तुम्हारे लिए......
माँ यूँ तो मेरे लिए कभी भी संभव नहीं हो सकेगा
तुम्हारे प्यार और विश्वास का मोल चूका पाना ....
या तुम्हारे द्वारा दी गयी जीवन की हर शिक्षा और
संस्कार के प्रति अपना आभार शब्दों में व्यक्त कर पाना ,....
लेकिन फिर भी मुझे आशा है की ये सन्देश तुम तक
मेरे मन की भावनाओ को पंहुचा सकेगा ....
और सहृदय शुभाकांक्षा कर सकेगा....
तुम्हारे दीर्घायु होने की ....तथा
सदा सुखद एवं आनंदमय भविष्य की......
Monday, July 28, 2008
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